संस्कृत में " लट् , लिट् , लुट् , लृट् , लेट् , लोट् , लङ् , लिङ् , लुङ् , लृङ् " – ये दस लकार होते हैं

 आज हम संस्कृत के लकार के बारे में जानेंगे I किस तरह से जो लकार हम पढ़ते हैं वह क्या सही है ? या कितने लकार होते हैं ? मन में यह सब कुछ जो प्रश्न होता है सभी का Answer आज हम पढ़ेंगे।

संस्कृत में  लट् , लिट् , लुट् , लृट् , लेट् , लोट् , लङ् , लिङ् , लुङ् , लृङ्  – ये दस लकार होते हैं


संस्कृत में " लट् , लिट् , लुट् , लृट् , लेट् , लोट् , लङ् , लिङ् , लुङ् , लृङ् " – ये दस लकार होते हैं। 


संस्कृत में " लट् , लिट् , लुट् , लृट् , लेट् , लोट् , लङ् , लिङ् , लुङ् , लृङ् " – ये दस लकार होते हैं।

वास्तव में ये दस प्रत्यय हैं जो धातुओं में जोड़े जाते हैं। इन दसों प्रत्ययों के प्रारम्भ में " ल " है

इसलिए इन्हें 'लकार' कहते हैं (ठीक वैसे ही जैसे ॐकार, अकार, इकार, उकार इत्यादि)।

 इन दस लकारों में से 
आरम्भ के छः लकारों के अन्त में 'ट्' है-
लट् लिट् लुट् आदि इसलिए ये " टित् " लकार कहे जाते हैं और

अन्त के चार लकार " ङित् " कहे जाते हैं क्योंकि उनके अन्त में 'ङ्' है।

 व्याकरणशास्त्र में जब धातुओं से

 पिबति, खादति आदि रूप सिद्ध किये जाते हैं

तब इन " टित् " और " ङित् " शब्दों का बहुत बार प्रयोग किया जाता है।

इन लकारों का प्रयोग विभिन्न कालों की क्रिया बताने के लिए किया जाता है।

जैसे -


  •  जब वर्तमान काल की क्रिया बतानी हो तो धातु से " लट् " लकार जोड़ देंगे, 

  • परोक्ष भूतकाल की क्रिया बतानी हो तो " लिट् " लकार जोड़ेंगे।



(१) लट् लकार ( वर्तमान काल ) 

जैसे :-
श्यामः खेलति । = श्याम खेलता है।


(२) लिट् लकार ( अनद्यतन परोक्ष भूतकाल ) जो अपने साथ न घटित होकर किसी इतिहास का विषय हो । 

 जैसे :-
रामः रावणं ममार । = राम ने रावण को मारा ।

(३) लुट् लकार(अनद्यतन भविष्यत् काल ) जोआज का दिन छोड़ कर आगे होने वाला हो । 

 जैसे :-
सः परश्वः विद्यालयं गन्ता । = वह परसों विद्यालय जायेगा ।

(४) लृट् लकार ( सामान्य भविष्य काल ) जो आने वाले किसी भी समय में होने वाला हो । 

 जैसे :-
रामः इदं कार्यं करिष्यति । = राम यह कार्य करेगा।

(५) लेट् लकार ( यह लकार केवल वेद में प्रयोग होता है, ईश्वर के लिए, क्योंकि वह किसी काल में बंधा नहीं है। )

(६) लोट् लकार ( ये लकार आज्ञा, अनुमति लेना, प्रशंसा करना, प्रार्थना आदि में प्रयोग होता है । ) 

 जैसे :-


  •  भवान् गच्छतु । = आप जाइए । ;
  •  सः क्रीडतु । = वह खेले । ; 
  •  त्वं खाद । = तुम खाओ । ; 
  •  किमहं वदानि । = क्या मैं बोलूँ ?


(७) लङ् लकार ( अनद्यतन भूत काल ) आज का दिन छोड़ कर किसी अन्य दिन जो हुआ हो । 

 जैसे :-
भवान् तस्मिन् दिने भोजनमपचत् । = आपने उस दिन भोजन पकाया था।

(८) लिङ् लकार = इसमें दो प्रकार के लकार होते हैं :--

(क) आशीर्लिङ् ( किसी को आशीर्वाद देना हो । ) 
 जैसे :-


  •  भवान् जीव्यात् । = आप जीओ । ; 
  •  त्वं सुखी भूयात् । = तुम सुखी रहो।


(ख) विधिलिङ् ( किसी को विधि बतानी हो ।)
 जैसे :-


  • भवान् पठेत् । = आपको पढ़ना चाहिए। ; 
  • अहं गच्छेयम् । = मुझे जाना चाहिए।


(९) लुङ् लकार ( सामान्य भूत काल ) जो कभी भी बीत चुका हो । 

 जैसे :-
अहं भोजनम् अभक्षत् । = मैंने खाना खाया।

(१०) लृङ् लकार ( ऐसा भूत काल जिसका प्रभाव वर्तमान तक हो) जब किसी क्रिया की असिद्धि हो गई हो । 

 जैसे :-
यदि त्वम् अपठिष्यत् तर्हि विद्वान् भवितुम् अर्हिष्यत् । = यदि तू पढ़ता तो विद्वान् बनता।

इस बात को स्मरण रखने के लिए कि
 धातु से कब किस लकार को जोड़ेंगे, निम्नलिखित श्लोक स्मरण कर लीजिए-

लट् वर्तमाने लेट् वेदे भूते लुङ् लङ् लिटस्‍तथा ।

विध्‍याशिषोर्लिङ् लोटौ च लुट् लृट् लृङ् च भविष्‍यति ॥

अर्थात्
  •  लट् लकार वर्तमान काल में,

  •  लेट् लकार केवल वेद में,

  •  भूतकाल में लुङ् लङ् और लिट्, 

  •  विधि और आशीर्वाद में लिङ् और लोट् लकार तथा 

  •  भविष्यत् काल में लुट् लृट् और लृङ् लकारों का प्रयोग किया जाता है।)
संस्कृत में " लट् , लिट् , लुट् , लृट् , लेट् , लोट् , लङ् , लिङ् , लुङ् , लृङ् " – ये दस लकार होते हैं 


लकारों के नाम याद रखने की विधि-

" ल् " में प्रत्याहार के क्रम से ( अ इ उ ऋ ए ओ ) जोड़ दें

और क्रमानुसार ( ट् ) जोड़ते जाऐं ।

फिर बाद में ( ङ् ) जोड़ते जाऐं जब तक कि दश लकार पूरे न हो जाएँ ।

जैसे


  •  लट् लिट् लुट् लृट् लेट् लोट् 
  •  लङ् लिङ् लुङ् लृङ् ॥ 


इनमें लेट् लकार केवल वेद में प्रयुक्त होता है । लोक के लिए नौ लकार शेष रहे ।

अब इन नौ लकारों में लिङ् के दो भेद होते हैं :--
आशीर्लिङ् और विधिलिङ् ।
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इस प्रकार SLOK में दश के दश लकार हो गए ।

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