सस्कृंत नीतिवणी-परोपकाराय फलन्ति वृक्षाः

सस्कृंत नीतिवणी-परोपकाराय फलन्ति वृक्षाः


परोपकाराय फलन्ति वृक्षाः 
परोपकाराय वहन्ति नद्यः ।
परोपकाराय दुहन्ति गावः 
परोपकारार्थंमिदं शरीरम् ॥

 दुनिया में बहुत सारे लोग होते हैं जो कि स्वास्थ्य पर होते हैं खुद के लिए जीते हैं, पर कुछ प्रकृति के ऐसे ही हैं जो खुद के लिए नहीं अन्य के लिए जीते हैं I  जैसे पेड़ हमें फल देता है पर खुद के लिए नहीं दूसरों के लिए  पेड़ में फल बनाता है , नदी जो कि खुद पानी नहीं बहता अन्य के लिए रहता है उसकी पानी लेकर हम जीते हैं, गौ माता जो कि अन्य के लिए वह दूध देता है हम खा कर खुश होकर जीवन खुशी से रहते हैं, इसीलिए इन तमाम चीजों को मानते हुए हमें यह नतीजे में पहुंचे कि हमारा शरीर भी दूसरों के लिए है, और हमें भी परोपकार करना चाहिए I


नमन्ति फलिनो वृक्षा नमन्ति गुणिनो जनाः ।
शुष्कवृक्षाश्च मूकर्खाश्च न नमन्ति कदाचन ॥


 दुनिया में बहुत प्रकार के व्यक्ति होते हैं कभी-कभार बोलो अपनी घर इंसान से मानव भाग से चलते हैं और कभी गवार सिर नीचे करके जलते हैं I  जैसे साधु व्यक्ति अपनी नसीब होता है और चुपचाप रेहता है, दुष्यंत ही अगर खुला हुआ हो तो वह नीचे आ जाता है,  पर सुखा पर कोई देखे होंगे जो कि कभी भी वह अपनी कोई नहीं नीचे करता है, और जो मूर्ख होते हैं वह अपनी आंखों से कभी भी शेर  को नीचे नहीं करते  I

विन कर्येण ये मुढा गच्च्गन्ति परमन्दिरम् ।
अवश्यं लघुतां यन्ति कृष्णपक्षे यथा शशि ॥


 हम दूसरों के एक घर जाते हैं किसी काम हो तो,पर जो कोई भी काम ना हो पर दूसरों के घर के अंदर घुसता है उसका चरित्र में कलंक  लगता  है I जैसे कृष्ण पक्ष में चंद्र को    गिरना पड़ता है  उसी तरह मानव को अपने जीवन के चरित्र में  हानि करता है I

उपदेशो हि मूर्खणं प्रकोपाय न शान्तये ।
पयः पानं भुजङ्गानां केवलं विषवर्धनम् ॥ 


 मानव को उपदेश देना सही बात है पर कुछ ऐसे लोग हैं  जिन को उपदेश देने  उनकी शांति को क्रोध में बदल देता है  या उनकी क्रोध को शांति नहीं दे पाता , जैसे  सापोंको   को जितना दूध पिलाया जाए और उनको विष  ही   देना पड़ता है I गाना जॉन डीरे इतना तो करीना करीना कपूर तनु एमएस धोनी I



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